Saturday, December 20, 2008

कभी कभी ......

कभी कभी तुमसे बिछड़ने का भी गम नहीं होता
मोहब्बत का दुनिया मे कोई भी मरहम नहीं होता
मैं रात भर रोता हूँ पर आँखें नम नहीं होती
मेरे रोने से कभी कोई दरिया कम नहीं होता

मानस भारद्वाज

Sunday, December 7, 2008

हर्फ़ हर्फ़ सवाली हो जाता है

हर्फ़ हर्फ़ सवाली हो जाता है
तेरे बिना जीना गाली हो जाता है
मैं तुझे फ़ोन करता हूँ तू काट देता है
आदमी मुहब्बत मे भिखारी हो जाता है

मुझे तेरे प्यार पे ऐतबार है
पर तेरा रूखापन सवाली हो जाता है
तू जिसे ठुकरा दे वो
अच्छा खासा आदमी सरकारी हो जाता है

तुझे याद करना दर्द कहलाता है
तुझे लिख देना शायरी हो जाता है
तेरे साथ हर लम्हे मे जिंदगी बसती है
तेरे बाद हर लम्हा बेकरारी हो जाता है

सब तेरा ही नाम जपते हैं
तेरी आवाज सुन फ़कीर व्यापारी हो जाता है
सारी दुनिया मे तेरा राज चलता है
हर कोई तेरे सामने दरबारी हो जाता है

तुझसे मोहब्बत बीमारी है
आदमी बिन पैसे का दिहाडी हो जाता है
तू इश्क को खेल समझता है
तेरा चाहने वाला जुआरी हो जाता है

मानस भारद्वाज

Wednesday, October 22, 2008

तुमसे मोहब्बत है इसलिए अभी ऐतबार बाकी है

तुमसे मोहब्बत है इसलिए ऐतबार बाकी है
इतने धोकों के बाद भी कारोबार बाकी है

मैंने तेरी चाहत में जिंदगी बरबाद कर ली
पर टूटा नही हूँ अभी घरबार बाकी है

मैंने हर आंसू हजारों में बेचा है
बेचना आए तो अभी खरीदार बाकी है

दोस्त तो सारे बदल गए हैं
दुश्मनों में अभी भी मेरा यार बाकी है


मानस भारद्वाज

Monday, September 22, 2008

दर्द मुस्कराया इस तरह

दर्द मुस्कराया इस तरह जिंदगी बट गयी खैरात मे
आधा वक़्त गुजरा तेरे साथ मे आधा तेरी याद मे

मैंने हर आंसू से एक मोती चुनकर सजा दिया
हर सुबह का समझोता हुआ हैं शाम से बात बात मे

मानस भारद्वाज

Monday, September 15, 2008

मुझको नहीं पता कविता क्या हैं

मुझको नहीं पता कविता क्या हैं
क्या सबध हैं क्या भाव हैं क्या मिश्रा हैं
कोई क्यों मेरा लिखा पढता हैं
कोई क्यों पढ़ते पढ़ते रो देता हैं
मुझको नहीं पता कविता क्या हैं

मुझको नहीं पता मेरे आस पास क्या दुनिया हैं
मुझे तो अपने आप से फुर्सत नहीं हैं
तो फिर क्यों ये कश्मीर का मसला हैं
क्यों लोग मरे हैं क्यों बम फटा हैं

मुझे तो दो वक़्त की रोटी मिल गई हैं
कुछ सिगरेट भी जलाई हैं कुछ नशा भी किया हैं
तो फिर क्यों किसानो ने आत्महत्या करी हैं
क्यों कब्र मे से एक आदमी आके कहता हैं
सारे कर्ज मैं ही आकर चुका दूंगा
मेरे बच्चे को छोड़ देना वो अभी छोटा हैं

मेरी बेहेन ने कॉन्वेंट मे पढाही करी हैं
मक्दोनाल्ड मे पिज्जा भी खाया हैं
टाइट जींस भी पहनी हैं नया फैशन भी अपनाया हैं
तो फिर क्यों गाँव मे एक बच्ची कहती हैं
अम्मा मरी नहीं थी उसे जिन्दा ही जलाया हैं

मेरा देश यू तो बहुत तरक्की कर रहा हैं
पर अभी भी स्कूल कम और मंदिर ज्यादा हैं
सेयर बाजार का मुझे नहीं पता हैं
अम्बानी टाटा बिरला ने क्या क्या किया हैं
धोनी यू तो बड़े बड़े मैच जिता रहा हैं
पर सुना हैं मेरे बाजु मे रहने वाला नत्थू
हर रोज जीने कि लिए कई बार मर रहा हैं

मुझको नहीं पता कविता क्या हैं

मानस भारद्वाज

Thursday, September 11, 2008

तूने भी तो सुना हैं दरिया के पानी को

तूने भी तो सुना हैं दरिया के पानी को
फूलों सी महकती मोहब्बत की कहानी को
कि लब्जों की जबानी सब सच नहीं होती
समंदर की लहरें किसी के बस नहीं होती

ये रातों मे बहता हुआ पैगाम भी सुन ले
आँखों से टपकता हुआ एक नाम भी सुन ले
बात सिर्फ इतनी हैं यहाँ तेरी बात नहीं होती
तू वक़्त के साथ हैं पर कभी साथ नहीं होती

मेरे बस मे सिर्फ इतना हैं तेरा नाम न लूं
सरेआम तेरे साथ रहूँ पर सरेआम न लूं
पर ये यादें भी सिर्फ याद नहीं रहती
साथ हंसती हैं रोटी हैं पर साथ नहीं रहती

चिड्ती हैं खीजती हैं चिडाती हैं यादें
पल दो पल साथ ले जाती हैं यादें
मेरी दुनिया भी कभी कभी मेरी दुनिया नहीं रहती
मैं इनके साथ रहता हूँ ये मेरे साथ नहीं रहती

मानस भारद्वाज

Saturday, August 2, 2008

जिन्दगी

न सोचा कभी न चाहा कभी
फ़िर भी न जाने क्यों
तुझसे मुलाकात हो गई
बात तो खेर तुझमे
कुछ ख़ास नही थी
फ़िर भी न जाने क्यों
ये बात हो गई


शब्द जुबान पर आकर लड़खडाने लगे

एहसास उमंग नई जगाने लगे

कुछ पलों मे जिन्दगी गुजरने लगी
कुछ पलों मे हम जिन्दगी संजोने सजाने लगे

पर जिंदगी का क्या है कैसे ये दगा देती है
कभी ये हँसा देती है तो कभी रूला देती है
कहते हैं जीने के लिए साँसे चाहिए
पर हमे मालूम है ये सबको कहाँ देती है

जिंदगी एक नाव है जो समंदर मे बहती ही रहती है
जिंदगी एक आग है जो जलती ही रहती है
न नाव का साहिल है न आग को है बुझना
बस तैरते ही रहना है और जलते ही रहना है

और अब मुझे कभी कभी लगता है
मैं यू ही इधर उधर भटकता रहता हूँ
पता नही क्या खोजा करता हूँ किसे ढूंढ़ता रहता हूँ

अब मुझे समझ मे आया है कि तू ही जिन्दगी है

मानस भारद्वाज

Sunday, July 27, 2008

रात की इबारत मिट ही जाती है

रात की इबारत मिट ही जाती है
वक्त के आगे किसकी चल पाती है

कील की तरह मुझमे समाती हैं
यादें धीरे धीरे दर्द पहुचती हैं

किस मुखोटे मे किसका चेहरा है खुदा जाने
जिंदगी लोग पहचानने मे निकल जाती है

हर तरफ़ इतना हसीं माहौल है
कभी कभी हमारी जिंदगी हमें तरसती है

भासा की खामियां तो सब जानते हैं
पर दिल की जुबान कहाँ दूजो तक पहुच पाती है

हर पल कुछ नया लेकर आता है
हर पल अहक या मुश्कान बिखर जाती है

मेरे शहर मे अभी भी रहता है वो
जिसके कारण गज़ल गज़ल कहलाती है

अम्मा अक्सर मुझको कहती रहती थी
तू अभी छोटा है तुझको समझ नही आती है

मानस भारद्वाज

Wednesday, July 16, 2008

जितनी तमन्नाये थी सब पूरी हो गई थी

जितनी तमन्नाये थी सब पूरी हो गई थी
पर फिर भी दिल मे बैचैनी थी वो क्यों थी

जिस से मोहब्बत थी वो मिल गई थी
पर फिर भी किसी की याद थी वो क्यों थी

जितने दुःख थे आंसू मे बह गए थे
पर फिर भी आंखों मे नमी थी वो क्यों थी

मानस भारद्वाज

Monday, July 14, 2008

जिन्दगी हवाओं मे बहती है

जिन्दगी हवाओं मे बहती है
लहरों मे मचलती है
ख्वाबों मे बेहेकती है
आसमा मे रंगों मे रहती है

जिन्दगी उमंगों की पोटली है
तरंगों का खजाना है
ख्वाइशों का चहकना है
यादों का दहकना है

जिन्दगी एक कविता पुरानी है
खोयी हुई एक कहानी है
यू तो पड़े हुए मिल जाती है
पर खोजो तो हाथ नही आनी है

जिन्दगी रागों का समंदर है
यू तो कुछ भी नही है
पर बहुत कुछ हर किसी के अंदर है

जिंदगी को लिखूं तो बहुत शब्द हैं
न लिखूं तो कुछ भी कहाँ है
मुझे नही पता
जिंदगी क्या है
शब्धों मे कहूं तो सिर्फ़ इतना है

वो जिन्दगी जिन्दगी नही है
जो जिन्दगी तेरे बिना है


मानस भारद्वाज

Saturday, July 12, 2008

raat khwab me

रात ख्वाब मे क्या देखता हूँ
की उसने अपने हाथों से अपना फ़ोन नंबर
मेरे हाथों पर लिख दिया है
और अपने घर का पता बताया है
मुझे बुलाया भी है


जागता हूँ तो हाथों पर क्या देखता हूँ
हाथों पर नम्बर तो मिट चुका है
पर हथेली पर कलम चलने का निशान बाकी है
उसके घर का पता तो याद नही है
पर अभी भी यादों मे एक मकान बाकी है

मानस भारद्वाज

Wednesday, June 25, 2008

कुछ मिसरे अभी जिंदा हैं

मैं बंजारों की तरह दुनिया भर के किनारों पे फिर हूँ
तुझसे बचने के लिए तेरे इशारों पे फिर हूँ

मैं बुद्ध नही हूँ पर दुनिया छोड़ चुका हूँ
अपनी हस्ती मिटाकर ख़ुद से भी मुँह मोड़ चुका हूँ
जंगल नदियाँ पर्वत पानी बादल पंछी खुशियाँ वीरानी
सिर्फ़ तुझे ही नही छोडा इन सब को भी छोड़ चुका हूँ

मैं शब्द शब्द से नाता तोड़ भावों से मुँह मोड़ चुका हूँ
प्यार की ख्वाइश इतनी करी की प्यार की ख्वाइश छोड़ चुका हूँ
मुझे जेहर की आदत हैं जेहर पे जिन्दा रहता हूँ
न कंठ नीला हैं न साँप लिप्त हैं पर तीसरी आँख खोल चुका हूँ

मानस भारद्वाज

Thursday, June 19, 2008

मैं आ गया हूँ बता

मैं आ गया हूँ बता तेरा पैगाम क्या है
मैं मरने को तैयार हूँ बता इंतजाम क्या है

कोई भी अदालत इसे ग़लत नही कह सकती है
मैंने तो मोहब्बत की है बता तेरा इल्जाम क्या है

सोना चांदी हीरे मोती जो चाहा था सब मिल गया है
पर मुझसे खो गई है जो चीज उसका नाम क्या है

मैंने उससे मोहब्बत की है सीना ठोक के कहता हूँ
फांसी पे लटका दो इससे ज्यादा तुम्हारे बस मे अंजाम क्या है

वोह मेरा है मैं इसी ग़लतफ़हमी मे जी रहा हूँ
जो इस ग़लतफहमी को मिटा सके उसका नाम क्या है

मैं जबसे उससे मिला हूँ तन्हा हूँ पर उसके साथ हूँ
उसके आगे ये फूल तितली सागर शबनम चाँद क्या है

लोग कहते हैं मैं उसे भूल जाऊंगा एक दिन
दिन मान लिया पर रात भी आती है रात का इंतजाम क्या है

मानस भारद्वाज

Sunday, May 25, 2008

तुमको शब्दों मे ढाल सकू मैं इतनी मेरी औकाद नही है
आज मेरे पास सब हैं चाँद मेरे आस पास नही है

तेरे बिना खुशियाँ ही नही गम भी अधूरा है
ये कैसा दर्द है की आज तेरे बिना मन भी उदास नही है

मैं दरिया किनारे खडा हो जाता तो सागर मिलने आता था
आज साहिल पे आया हून्तो कोई लहर भी आसपास नही है

मैं बरसों इसी ग़लतफहमी मे जिया हूँ की तेरे लिए ही बना हूँ
अब मरकर तेरी सासों मे जिंदा हूँ मेरी लाश मेरी लाश नही है

मानस भारद्वाज

Monday, May 5, 2008

आज फिर वो पन्ना निकल आया था

आज फिर वह पन्ना निकल आया था
जिसमे पीले गुलाब की वो कली रखी थी
जो किसी ने मांगी थी मैं नही दे पाया था
उस तोहफे को मैं तोड़ लाया था
इसी किताब के उस पन्ने मे मैंने चोरी चोरी छुपाया था

आज उस पन्ने को देखकर आंख भींग जाती है
पर पीले गुलाब की वो कली देखकर
मीठी मीठी याद आती हैं
मैं तो बार बार मर रहा था
इसी पन्ने ने मुझे जीना सिखाया था
इसी कली की तो लेकर प्रेरणा
मैंने जीवन को अपनाया था

आज फिर वो पन्ना निकल आया था

मानस भारद्वाज

Friday, April 25, 2008

उसके हुस्न का ये भी जादू था

I WROTE THIS GAZAL LAST NIGHT AND THIS MORNING I FOUND A VERY OLD FRIEND OF MY CHILDHOOD .I DEVOTE IT TO HIM ..................

NILAY ITS FOR YOU ........

उसके हुस्न का ये भी जादू था कि कोई उसे सहने वाले नही मिले
उसके लिए मरने वाले तो बहुत थे पर उसके लिए जीने वाले नही मिले

वह बला कि खूबसूरत थी चाँद को भी मात देती उसकी सूरत थी
पर हमारे बाद कभी उसे हम जैसे दीवाने नही मिले

एक सुखा हुआ फूल ताउम्र अपनी किताब मे रखा हमने
उसके याद आने के कई कारण थे उसे भुलाने के बहाने नही मिले *

तेरे बिना भी हम अपनी सल्तनत के बादशाह थे अपने पर गुरुर न कर
तुझसे मुहब्बत मे सिर्फ़ दर्द ही मिला कोई खजाने नही मिले

मानस भारद्वाज
* ये शेर किसी और शेर से मिलता हुआ मुझे प्रतीत होता हैं । होता क्या हैं कि कई बार कविता लिखते समय हम भाव मे बहते हुए किसी और कि पंक्ति को अपना समझ लेते हैं । पाठकों से निवेदन हैं कि वे धेर्य से काम ले
और अगर उन्हें इसके शायर का नाम पता हैं तो मुझे बताये । मुझे उनका नाम लिखकर एक बोझ अपने ऊपर से उतरता हुआ महसूस होगा ।

Thursday, April 17, 2008

मन अनुरागी तन बैरागी

मन अनुरागी तन बैरागी ये कोरी दुनियादारी हैं
कुछ उनका भोलापन हैं कुछ सीधे सीधे लाचारी हैं

सीधी राहें पकड़ के चलना सबके बस कि बात नहीं
हमसे पूछो टेडी दुनिया में सीधा चलना कितनी बड़ी फनकारी हैं

आखिर दुनिया तूने हमको फसा ही डाला जाल में अपने
दिल अब उनसे मिलाते हैं जिनसे हाथ मिलाना भी भारी हैं

ख्वाब हमारे उसके वास्ते हैं जिससे कोई रिश्ता नहीं हैं
और जिनसे दुश्मनी होनी थी उनसे हमारी यारी है

---मानस भारद्वाज

ये ग़ज़ल निदा फाजली साहब की ग़ज़ल से प्रेरणा प्राप्त कर लिखी गई हैं ...

Tuesday, April 8, 2008

कोई भाव नही आते हैं आज

कोई भाव नही आते हैं आज
शब्द सारे ख़त्म हो चुके हैं
ना कोई बैचैनी न कोई दर्द
दिल साला अब खाली - खाली हैं
बस मैं ख़ुद हूँ
ख़ुद मैं समाया हूँ
कोई भाव नही आते हैं आज

तू आ आज रात मुझमे कविता जगा

कोई भाव नही आते हैं आज
-----मानस

Friday, April 4, 2008

रात चांदनी

रात चांदनी मेरे साथ जली थी
मैंने देखा था सितारों में आग लगी थी
महका - महका धुआ निकला था
रात चाँद पर राख उडी थी

रात चांदनी मेरे साथ जली थी
---मानस

Tuesday, April 1, 2008

अक्सर मेरे साथ ये एहसास चलता हैं

अक्सर मेरे साथ ये एहसास चलता हैं
अक्सर मेरे साथ तू नहीं तेरा साथ चलता हैं

जिस्म रूह खुदा मैं सब भूल जाता हूँ
मेरी दुनिया का हर कतरा तेरे आसपास चलता हैं

मोहब्बत नफरत खुशियाँ गम सब मिट जाते हैं
जब तेरे साथ चलता हूँ खुदा साथ चलता हैं

उदास सा एक किस्सा मेरे आसपास चलता हैं
अक्सर मेरे साथ ये एहसास चलता हैं
अक्सर मेरे साथ तू नहीं तेरा साथ चलता हैं
---मानस

मैं रोउंगा तो और रुलाने आयेगा

मैं रोऊंगा तो और रुलाने आएगा
हैं गम बहुत वो आँसू बहाने आयेगा

जिंदगी कि ख्वाइशों का कोई और छोर नहीं
मैं जीना चाहूँगा तो वो मौत के बहाने आएगा

कसक तो बहुत बची हैं दिल में पर
सब भुला दूंगा अगर हाथ मिलाने आएगा

पतझर चल रहा हैं अभी जिंदगी मैं
पर एक दिन वो बनके बहार आएगा

---मानस

Sunday, March 30, 2008

अक्सर उसकी तस्वीर मिटा दिया करता हूँ मैं

अक्सर उसकी तस्वीर मिटा दिया करता हूँ मैं
जब चलता हूँ राहों पर
अपनी तक़दीर मिटा दिया करता हूँ मैं
मुझे मालूम हैं हर रास्ता आख़िर में
उसी तक मुड़कर जाता हैं
इसीलिए हाथों कि लकीर
मिटा दिया करता हूँ मैं

उसी को खोजता हूँ मैं हर किसी मैं
उसी को पाता हूँ मैं किसी मैं
तो उसी को खो देता हूँ मैं किसी मैं
मुसलसल ये चलती रहती हैं
जब जब बात बनती हैं
तब तब बिगड़ती रहती हैं

कुछ भी इस जहाँ मंएन ऐसा नही हैं
जिसे पुरा कह सकता हूँ मैं
उसके बिना मैं ख़ुद अधूरा हूँ
उसले बिना हर किसी को
अधुरा कह सकता हूँ मैं

अक्सर उसकी तस्वीर मिटा दिया............

Friday, March 28, 2008

शरारत

फलक से चाँद जब भी मुझे लटके-लटके देखता है
मैं उसे अपनी छत से मुँह बना-बना के कई तरह से चिडाता हूँ
जैसे कोई बच्चा अपने पड़ोस मे रहने वाले बच्चे को चिडाता है
पर फिर तेजी से घर मे भागता हूँ रात भर डरता हूँ घबराता हूँ
पड़ोस मे रहने वाले बच्चे लड़ने झड़ने पर एक दूसरे पर
गेंद कंकड़ पत्थर और ना जाने क्या - क्या फेकते हैं

किसी रात चाँद ने कोई सितारा दे मारा तो

Thursday, March 27, 2008

कभी यू ही सामने आ जाती है रौशनी की तरह

कभी यू ही सामने आ जाती है रौशनी की तरह
अजब सी ये आदतें होती हैं जिंदगी की तरह

बादल मे समा जाता है अक्सर चेहरा उसका
याद आती है उसकी बरसते पानी की तरह

कभी - कभी दोस्तों के साथ हँसी ठिठोली के बीच
उदासी आ जाती है छुट्टियों की दुपहरी की तरह

वो खेलते मे हारती है तो चिड्ती खिजती मारती भी है
वो भी हरकतें करती है कभी-कभी बच्चों की तरह

ये भी अजब बात हुई है मेरे साथ सनम
में भी लिखने लगता हूँ कभी शायरों की तरह

मानस भारद्वाज