Tuesday, April 8, 2008

कोई भाव नही आते हैं आज

कोई भाव नही आते हैं आज
शब्द सारे ख़त्म हो चुके हैं
ना कोई बैचैनी न कोई दर्द
दिल साला अब खाली - खाली हैं
बस मैं ख़ुद हूँ
ख़ुद मैं समाया हूँ
कोई भाव नही आते हैं आज

तू आ आज रात मुझमे कविता जगा

कोई भाव नही आते हैं आज
-----मानस

2 comments:

Girish Billore Mukul said...

प्रिय मानस

कविता के विषयों के लिए तनाव होना चाहिए. जीवन भर लिखो विषय खत्म नहीं होते कवि मेरी नज़र में मणि पारखी होता है उसके पास जमा रहते हैं हजारों-हजार शब्द-मणियाँ ,शब्दों को विचारों की कसौटी पर परखिए,और जड़ लीजिए बन गयी कविता
ये मेरी सोच है .कविता पीढा से जन्म लेती है क्रोंच पक्षी को जब चोट लगी जो उसके ह्रदय से आह निकली वही आह विश्व की पहली कविता है.
राम,कृष्ण,सभी की जिंदगियों को देखिए कितनी कष्टमय ज़िंदगी थी इनकी यदि कई विचार करे भावुक होकर तो कविता बन जाती है जैसे तुलसी दास, रसखान,सब ने इनकी ज़िंदगी की पीढा ख़ुद में महसूस की और लिख दी कविता जो अजर-अमर,हो गयीं कविता में सस्ते शब्द जैसे "साला"आदि का प्रयोग मत कीजिए

Archit said...

me girish ji se sehmat hoon...!!