Wednesday, June 25, 2008

कुछ मिसरे अभी जिंदा हैं

मैं बंजारों की तरह दुनिया भर के किनारों पे फिर हूँ
तुझसे बचने के लिए तेरे इशारों पे फिर हूँ

मैं बुद्ध नही हूँ पर दुनिया छोड़ चुका हूँ
अपनी हस्ती मिटाकर ख़ुद से भी मुँह मोड़ चुका हूँ
जंगल नदियाँ पर्वत पानी बादल पंछी खुशियाँ वीरानी
सिर्फ़ तुझे ही नही छोडा इन सब को भी छोड़ चुका हूँ

मैं शब्द शब्द से नाता तोड़ भावों से मुँह मोड़ चुका हूँ
प्यार की ख्वाइश इतनी करी की प्यार की ख्वाइश छोड़ चुका हूँ
मुझे जेहर की आदत हैं जेहर पे जिन्दा रहता हूँ
न कंठ नीला हैं न साँप लिप्त हैं पर तीसरी आँख खोल चुका हूँ

मानस भारद्वाज

Thursday, June 19, 2008

मैं आ गया हूँ बता

मैं आ गया हूँ बता तेरा पैगाम क्या है
मैं मरने को तैयार हूँ बता इंतजाम क्या है

कोई भी अदालत इसे ग़लत नही कह सकती है
मैंने तो मोहब्बत की है बता तेरा इल्जाम क्या है

सोना चांदी हीरे मोती जो चाहा था सब मिल गया है
पर मुझसे खो गई है जो चीज उसका नाम क्या है

मैंने उससे मोहब्बत की है सीना ठोक के कहता हूँ
फांसी पे लटका दो इससे ज्यादा तुम्हारे बस मे अंजाम क्या है

वोह मेरा है मैं इसी ग़लतफ़हमी मे जी रहा हूँ
जो इस ग़लतफहमी को मिटा सके उसका नाम क्या है

मैं जबसे उससे मिला हूँ तन्हा हूँ पर उसके साथ हूँ
उसके आगे ये फूल तितली सागर शबनम चाँद क्या है

लोग कहते हैं मैं उसे भूल जाऊंगा एक दिन
दिन मान लिया पर रात भी आती है रात का इंतजाम क्या है

मानस भारद्वाज