Tuesday, April 1, 2008

अक्सर मेरे साथ ये एहसास चलता हैं

अक्सर मेरे साथ ये एहसास चलता हैं
अक्सर मेरे साथ तू नहीं तेरा साथ चलता हैं

जिस्म रूह खुदा मैं सब भूल जाता हूँ
मेरी दुनिया का हर कतरा तेरे आसपास चलता हैं

मोहब्बत नफरत खुशियाँ गम सब मिट जाते हैं
जब तेरे साथ चलता हूँ खुदा साथ चलता हैं

उदास सा एक किस्सा मेरे आसपास चलता हैं
अक्सर मेरे साथ ये एहसास चलता हैं
अक्सर मेरे साथ तू नहीं तेरा साथ चलता हैं
---मानस

3 comments:

Dr SK Mittal said...

मुझे याद आता है वोह जमाना
मेरा निक्कर में और तुम्हारा फिराक में आना
तुम्हारा हँसना और मुझे रुलाना
झगड़ना, रूठना फीर मान जाना
जब माँ ने मेरी दुल्हन बनने को कहा तो तुम्हारा शर्माना
एक दीन जब मुझे सजा मिली तो घर से चुरा कर मुझे खाना खिलाना.
आज तुम्हे भी वोह सब याद आता होगा. तुम मेरे सपने में आती हो में भी जरुर ख्यालों में आता हूँगा.
यह सभी यादें हमारी जिन्दगी की धरोहर हैं
जिसकी कोई कीमत नहीं फीर भी मनोहर हैं
आओ फीर उस ही दूनिया में वापस चलें
जहाँ तुम हो मैं हूँ पर घडी ना चले
बुझ जाये सारे दीये अंधियारी रात हो
तुम्हारे चाँद से चहरे से घूँघट हटाता मेरा हाथ हो
फिर ना दिन हो ना रात हो समय थम जाये जब तुमसे मुलाकात हो

Unknown said...

bahut hi acchi rachna hai . isske liye mai aap kotahe dil se badhai deta hun.

खोरेन्द्र said...

आप अच्छा लिखते है ..यह बात तो आप स्वयम जानते है मै कोई नयी बात तो कह नही रहा हू ..
इसलीये यही कह सकता हू की ,मै आपकी रचनाओ का एक् और प्रशंसक हो गया हू .."अक्सर मेरे साथ ये अहसास चलता है ,अक्सर मेरे साथ तू नही ,तेरा साथ चलता है "...बहुत सुन्दर मानस भारद्वाज जी ..हमतो आपके हो गए .....
aakhri kavita ..
किसी कवी की कवीता पड़कर ..तृप्त होना कवीता है ,..कवीता न लिख पाऊ ,पर ..कलम लेकर बैट जाऊ ,...और कोरे पृष्ट को देखता रहू ,.यह भी एक कवीता है ...कवीता शब्दों में ,कवी में या किताबो में बंद नही है ,...कवीता तोस्म्पूर्ण आदमी के भीतर है ,..समय से उसका अनुबंध है ....आखरी कवीता का ...सबको इंतजार है ...{किशोर कुमार }