Monday, September 15, 2008

मुझको नहीं पता कविता क्या हैं

मुझको नहीं पता कविता क्या हैं
क्या सबध हैं क्या भाव हैं क्या मिश्रा हैं
कोई क्यों मेरा लिखा पढता हैं
कोई क्यों पढ़ते पढ़ते रो देता हैं
मुझको नहीं पता कविता क्या हैं

मुझको नहीं पता मेरे आस पास क्या दुनिया हैं
मुझे तो अपने आप से फुर्सत नहीं हैं
तो फिर क्यों ये कश्मीर का मसला हैं
क्यों लोग मरे हैं क्यों बम फटा हैं

मुझे तो दो वक़्त की रोटी मिल गई हैं
कुछ सिगरेट भी जलाई हैं कुछ नशा भी किया हैं
तो फिर क्यों किसानो ने आत्महत्या करी हैं
क्यों कब्र मे से एक आदमी आके कहता हैं
सारे कर्ज मैं ही आकर चुका दूंगा
मेरे बच्चे को छोड़ देना वो अभी छोटा हैं

मेरी बेहेन ने कॉन्वेंट मे पढाही करी हैं
मक्दोनाल्ड मे पिज्जा भी खाया हैं
टाइट जींस भी पहनी हैं नया फैशन भी अपनाया हैं
तो फिर क्यों गाँव मे एक बच्ची कहती हैं
अम्मा मरी नहीं थी उसे जिन्दा ही जलाया हैं

मेरा देश यू तो बहुत तरक्की कर रहा हैं
पर अभी भी स्कूल कम और मंदिर ज्यादा हैं
सेयर बाजार का मुझे नहीं पता हैं
अम्बानी टाटा बिरला ने क्या क्या किया हैं
धोनी यू तो बड़े बड़े मैच जिता रहा हैं
पर सुना हैं मेरे बाजु मे रहने वाला नत्थू
हर रोज जीने कि लिए कई बार मर रहा हैं

मुझको नहीं पता कविता क्या हैं

मानस भारद्वाज

7 comments:

pawan arora said...

धोनी यू तो बड़े बड़े मैच जिता रहा हैं
पर सुना हैं मेरे बाजु मे रहने वाला नत्थू
हर रोज जीने कि लिए कई बार मर रहा हैं

मुझको नहीं पता कविता क्या हैं
...दोस्त आप यह केसे लिखते है यह मोती रूप शब्दों का खजाना आप जैसे मानस के ही पास क्यूँ है कविता क्या है मे नहीं जानता पर यह खजाना आप कि ग्रोहर है व् रहेगी ....कविता आप कि है मेरी नहीं है ...आप बधाई के पात्र है

Purnima said...

मेरा देश यू तो बहुत तरक्की कर रहा हैं
पर अभी भी स्कूल कम और मंदिर ज्यादा हैं
सेयर बाजार का मुझे नहीं पता हैं
अम्बानी टाटा बिरला ने क्या क्या किया हैं.......

....bahut khub likhaa hai wakai bahut acha likha hai....

शेरघाटी said...

मेरा देश यू तो बहुत तरक्की कर रहा हैं
पर अभी भी स्कूल कम और मंदिर ज्यादा हैं
सेयर बाजार का मुझे नहीं पता हैं
अम्बानी टाटा बिरला ने क्या क्या किया हैं
धोनी यू तो बड़े बड़े मैच जिता रहा हैं
पर सुना हैं मेरे बाजु मे रहने वाला नत्थू
हर रोज जीने कि लिए कई बार मर रहा हैं

bhai bahut achchi kavitayi kar rahe ho.
qalam ko salam.

बाल भवन जबलपुर said...

मिश्रा के स्थान पर मिसरा लिखा जावे बाकी चकाचक है

Unknown said...

hello manas
wakai tumne achchha likha hai....
shayad kuchh zayada emotions ke saath likh rahe the so kanhi kanhi poem ki packazing perfect mahi ho payi...........
but expression is awesome...
मेरी बेहेन ने कॉन्वेंट मे पढाही करी हैं
मक्दोनाल्ड मे पिज्जा भी खाया हैं
टाइट जींस भी पहनी हैं नया फैशन भी अपनाया हैं
तो फिर क्यों गाँव मे एक बच्ची कहती हैं
अम्मा मरी नहीं थी उसे जिन्दा ही जलाया हैं...
keep it up...
god bless you......
Prem

sarfaraz said...

mujhe nahi pata ki mujhe kya kehna hai.....,
phir bhi har alfaz me ek tanhai hai...,
ek surat he jo sab ho ne k baad bhi sharmai hai....,
ek ummid hai jo is bar phir musjhai hai...,
mujhe nahi pata..ki is dil ko dhar dhar krne vali KAVITA pr kya kehna hai....aur mai kya keh sakne ka salika rakhta hun....sarfaraz

sarfaraz said...

mujhe nahi pata ki mujhe kya kehna hai.....,
phir bhi har alfaz me ek tanhai hai...,
ek surat he jo sab ho ne k baad bhi sharmai hai....,
ek ummid hai jo is bar phir musjhai hai...,
mujhe nahi pata..ki is dil ko dhar dhar krne vali KAVITA pr kya kehna hai....aur mai kya keh sakne ka salika rakhta hun....sarfaraz