काश मैं इतना नहीं चाहता तुम्हे
कम से कम गाली तो दे पाता तुम्हे
मैं तुम्हे फ़ोन लगाता रहता हूँ
तुम काटती रहती हो
मैं तुम्हे sms करता हूँ
तुम जवाब नहीं देती हो
मैं तुम्हारी चिंता करता हूँ
मैं रोता रहता हूँ
मैं बिस्तर पर जाता हूँ
मैं सो नहीं पाता हूँ
मैं चिढ़ता रहता हूँ
मैं खीजता रहता हूँ
मैं खुद पर चिल्लाता हूँ
दीवारों पर हाथ मारता हूँ
किताबें फेंक देता हूँ
मुझे बहुत गुस्सा आता है
खुद पर निकालता रहता हूँ
मैं खुद से सवाल करता हूँ
खुद से जीतता रहता हूँ
मैं खुद से हारता रहता हूँ
मैं कितनी भी कोशिश कर लूं
मैं तुम्हे बददुआये दे नहीं पाता
तुम्हारे लिए मन से
दुआएं झरती रहती हैं
मैं खुद को गाली देता हूँ
मैं तुम्हे गाली तक दे नहीं पाता
फिर मेरा फ़ोन vibrate होता है
तुम्हारा sms आता है
"मम्मी के साथ हूँ उल्लू "
मैं reply करता हूँ
कमीनी .........हरामी
पहले नहीं बोल सकती थी
तुम्हारा सिर्फ एक sms जादू करता है
मैं तुम्हे गाली देता हूँ
मैं तुम्हे गालियाँ देने लगता हूँ
मानस भारद्वाज
Monday, August 16, 2010
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1 comment:
realistic poem hai
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