अक्सर उसकी तस्वीर मिटा दिया करता हूँ मैं
जब चलता हूँ राहों पर
अपनी तक़दीर मिटा दिया करता हूँ मैं
मुझे मालूम हैं हर रास्ता आख़िर में
उसी तक मुड़कर जाता हैं
इसीलिए हाथों कि लकीर
मिटा दिया करता हूँ मैं
उसी को खोजता हूँ मैं हर किसी मैं
उसी को पाता हूँ मैं किसी मैं
तो उसी को खो देता हूँ मैं किसी मैं
मुसलसल ये चलती रहती हैं
जब जब बात बनती हैं
तब तब बिगड़ती रहती हैं
कुछ भी इस जहाँ मंएन ऐसा नही हैं
जिसे पुरा कह सकता हूँ मैं
उसके बिना मैं ख़ुद अधूरा हूँ
उसले बिना हर किसी को
अधुरा कह सकता हूँ मैं
अक्सर उसकी तस्वीर मिटा दिया............
Sunday, March 30, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
उसके बिना मैं ख़ुद अधूरा हूँ...
ये इस कविता का सार्थक पक्ष है,
बहुत खूब
Manav Is Good Poet.
He Know D Meaning Of Words & His Specility is he know how 2 express it.
Thnk U V much & best luck.
we r waiting 4 ur new poems
Post a Comment