फलक से चाँद जब भी मुझे लटके-लटके देखता है
मैं उसे अपनी छत से मुँह बना-बना के कई तरह से चिडाता हूँ
जैसे कोई बच्चा अपने पड़ोस मे रहने वाले बच्चे को चिडाता है
पर फिर तेजी से घर मे भागता हूँ रात भर डरता हूँ घबराता हूँ
पड़ोस मे रहने वाले बच्चे लड़ने झड़ने पर एक दूसरे पर
गेंद कंकड़ पत्थर और ना जाने क्या - क्या फेकते हैं
किसी रात चाँद ने कोई सितारा दे मारा तो
Friday, March 28, 2008
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4 comments:
अरे वाह!-कितना प्यारा,सलोना -सा डर
क्या कहूँ,गजब ...........
lovely..
yunhi chalte chalte aapki sharart se takra gaya tha........ aapki kalpana ne to maan khush kar diya...........
great thought
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