आज फिर वह पन्ना निकल आया था
जिसमे पीले गुलाब की वो कली रखी थी
जो किसी ने मांगी थी मैं नही दे पाया था
उस तोहफे को मैं तोड़ लाया था
इसी किताब के उस पन्ने मे मैंने चोरी चोरी छुपाया था
आज उस पन्ने को देखकर आंख भींग जाती है
पर पीले गुलाब की वो कली देखकर
मीठी मीठी याद आती हैं
मैं तो बार बार मर रहा था
इसी पन्ने ने मुझे जीना सिखाया था
इसी कली की तो लेकर प्रेरणा
मैंने जीवन को अपनाया था
आज फिर वो पन्ना निकल आया था
मानस भारद्वाज
Monday, May 5, 2008
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15 comments:
भारद्वाज जी, सचमुच आपकी रचना बहुत बहुत बहुत सरल शब्दों में जीवन के सबसे सहज व सरल सार यानी प्रेम को दर्शाती है. रचना के भाव दिल में उरारते ही बनते हैं. बहुत खूब. इस रचना ने मेरे दिल में अन्यस्य ही जगह बना ली, अब ये मेरी भी प्रिय रचना है, मुझसे इससे इनकार नहीं. {कृपया मुझे मेल भी कर्देंगे, ख़ुशी होगी.} रचना हर मायने में बेहतर है मित्र. (शुक्रिया दिल को छुलेने वाली रचना से मिलाने के लिए)
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शुभकामनाओं सहित
सादर;
~अमित के. सागर~
very nice yaar...mind blowing poem....
beautiful....na jane kitnon ko aapne apni kavitaon se jeena sikhaya hoga.....man ko bha gayi aapki panktiyan...:)
एक गुलाब यादों भरी,
यादों का सिलसिला,कुछ कही, कुछ अनकही .....
बहुत कुछ कह गई ......
aaj phir wo panna nikal aaya
mere jivan ka ek kadwa sach
meri aankho ke saamne
ek kitab main pila gulab bankar
mujhe jajhodta nazar aaya
aaj phir wo panna nikal aaya
bhai ye meri kuch lines jo aapki kavita ko samarpit hain bas itna hi khena chahuinga........
Achchi rachana hai..
बहुत बढ़िया रचना है.बधाई. नियमित लिखें, शुभकामनाऐं.
MANAS AAP SACH MAIE HI BAHUT ACHA LIKHTE HO >>>>>>>KEEP IT UP
N GOD BLSS U
nice poetry manas ji.wah
Ek gulab aur unki yaaden bahut hi saral sabdon main jeevan aur pyaar ko bataya hai
Manas aapko padhna achha laga
ab kalam fir se chal padhi hai to apna naam last poem se bahata dariya kar le
pehli rachna ke hisaab se kafi sahi hain. hamari duaaaye aapke saath hain... behtar se behtarin hote jaye.....
dost main Ramji Yadav mujhe aapki kabita acchi lagi or main ye dabe ke sath kahta hoon ki aap ek din bahut kamyab honge or isse bhi jayda acchi lagi apki ye tarike jisese ki logo tak aap pahucha rahain hai blog bana ke aaj to mera office hr katam ho gaya kal main bhi ek blog banuga kabita mujhe bhi bahut pasand hai ek tume pess kiya hoon . bye reply dena jarur
वक़्त मुझे इतना भी मजबूर ना करे,
कम से कम यादो से तेरी दूर ना करे.
शोहरते बदल देती है रिश्तो के मायने,
मुकद्दर मुझे इतना भी मशहूर ना करे.
कम से कम यादो से तेरी दूर ना करे.
दौलत ,तरक्की या फिर कामयाबीया मेरी ,
ये वक़्त की ऊंचाईया मगरूर ना करे.
कम से कम यादो से तेरी दूर ना करे.
जुदाई भी दी है उन्होने तौफे में 'शफक' ,
कैसे भला कोई इसे मंजूर ना करे.
कम से कम यादो से तेरी दूर ना करे
RAMJI YADAV
its so touchy......
मानस तुम्हारी कविता पढ़.. एक मिसरा याद आया..
"कर रहा था मैं... ग़म-ए-जहाँ का हिसाब.."
आज तुम याद.. बेहिसाब आये"
प्यारी कविता लिखी है....!
zindgi ke wo khubsurat panne, jo dil ki kitab main darz ho jate hain, unhe sahejkar rakkhen manas!
shubh deepawali!
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