जब गाय के नाम पर
लोगों को मारा जा रहा था
तब मेरे साथी खामोश थे
वो कला में तल्लीन थे
वो आपस में विलीन थे
वो इस दंभ में जी रहे थे
कि वो कलाकार हैं
राजनीति उनका काम नहीं
वो आवाज़ नहीं उठा रहे थे
क्योंकि उनके अपने छोटे
छोटे फायदे थे
किसी को अपनी गाडी की emi
भरनी थी
किसी को अगले साल नई गाडी
लेनी थी
किसी को मोबाइल का नया
ब्रांड चाहिए था
किसी को और महँगी शराब
चाहिए थी
वो खुश थे कि उनके पास कला
है
वो सुंदर तस्वीरें ले रहे
थे
वो भददे जोक्स पर हंस रहे
थे
वो महंगे होटल में खाना खा
रहे थे
वो सेक्स की दवाइयां खरीद
रहे थे
वो फ्री में इन्टरनेट चला
रहे थे
वो बढ़िया फिल्मे देख रहे थे
वो तेज़ ताल के गाने सुन रहे
थे
वो तेज़ गाडी दौड़ा रहे थे
वो न जाने क्या क्या कर रहे
थे
उनको लगता था वो , वो बोल
रहे हैं
जो वो चाहते हैं !
हालाँकि वो बहुत सोच समझ के
बोल रहे थे
वो हर शब्द को तौल रहे थे ,
कि इससे
उनके invisible आका को ख़ुशी
होगी या नहीं
उनको लगता था आका की ख़ुशी
से उनकी
emi चलती रहेगी और
मोबाइल का नया हैंडसेट आता
रहेगा
उन्होंने मोबाइल के हैंडसेट
के लिए
अपने आप को रिमोट बना
लिया
और किसी के हाथ के द्वारा
उनकी
उन बटनों को दबाया गया
जिनको छूना अप्राक्रतिक
.....
खैर छोडिये ...
रुकिए छोड़ने से पहले ये सुन
लीजिये
वो अब एक ऐसे टीवी को चला
रहे हैं
जिसमे सत्य के सिवा सब कुछ
प्रत्यक्ष है ...
खैर ...
सत्य को कहने का उनने ठेका
नहीं लिया है
वो खुश हैं कि वो ठेके पे
जा पा रहे हैं
और टिक पा रहे हैं ...
राजनीति उनका काम नहीं है
वो राजनीति के काम के हैं
हाँ वो लोग भी नाम के हैं
ये सब जब हो रहा था मुझे
लगा
मैं सदियों पुराने रोम में
हूँ
असल में ये जो समय है
ये असल में नहीं है
मैं यहाँ नहीं हूँ
मैं कहीं नहीं हूँ
और
अगर मैं हूँ तो मैं
सदियों पुराने रोम में हूँ
और उस स्टेडियम में बैठा
हूँ
जहाँ ग्लैडिएटर का खेल चल
रहा है
जनता बहता खून देख के
उन्माद में चीख रही है
जनता को और खून चाहिए
और खून चाहिए
और खून चाहिए
इस खून का कोई अंत नहीं है
सम्राट खुश है कि उसने
जनता को ऐसे खेल में लगा
दिया है
जिसमे खून भी उसी का बह रहा
है
खून भी वो खुद बहा रही है
खुद को दर्द दे के कराह रही
है
और इसी कराह पे
वाह वाह चिल्ला रही है
सम्राट खुश है कि उसने
जनता को ऐसे खेल में लगा
दिया है
जिसमे तल्लीन हो के जनता
उससे सवाल नहीं पूछेगी
सम्राट को सवालों से डर
लगता है
वो सवालों को उठने नहीं
देना चाहता है
अगर सवाल उठेंगे तो सिंहासन
डोलेगा
सिंहासन डोलेगा जो तू ज़ुबान
खोलेगा
तू तो चुप ही रह तू क्या
बोलेगा
तू emi भर
मानस भारद्वाज