Tuesday, July 4, 2017
Sunday, June 25, 2017
किसान मर रहे हैं , cm उपवास कर रहे हैं
भगवान् जी क्रोधित हैं
धरती के गालों पर ओले मल रहे हैं
हरे खेत लाल रंग में ढल रहे हैं
किसान मर रहे हैं , cm उपवास कर रहे हैं
लाउड स्पीकर और टेंट वालो के बिल बढ़ रहे हैं
संसद से सड़क तक हो हल्ला है
टीवी चैनल पर मसाला है
अखबार नये विज्ञापन कर रहे हैं
किसान मर रहे हैं , cm उपवास कर रहे हैं
कल से आज और ज्यादा है
बड़े-बड़े आफिसो में हसी ठठाके चल रहे हैं
मंत्री जी अनाज महंगा कार सस्ती कर रहे हैं
सैंडविच खाने वाले मुल्क की
तरक्की की बात कर रहे हैं
फाके करने वाले फाके कर रहे हैं
किसान मर रहे हैं , cm उपवास कर रहे हैं
ये गुस्सा क्यूँ है ?
जब बिजली मिल रही है तो
आईपॉड चलाओ गाने सुनो
हँसो खाओ
नशा करो जियो जियो
अभी तो तुम जवान हो
बीयर पीयो
Saturday, August 21, 2010
कभी भी ना समझ पाएगी
मेरी बातों को वो जाहिल कभी भी ना समझ पाएगी
गिरेगी ओंस जब सुर्ख सुनहरी रातों में चंदा से
तब क्यों बजती है पायल कभी भी ना समझ पाएगी
बरसती आँखों को मौसम का बदलना मान लेगी
क्यों टपकती है छागल कभी भी ना समझ पाएगी
लकीरों को हाथों में अपने टक टक देखा करेगी
कब पीले होते हैं चावल कभी भी ना समझ पाएगी
बच्ची थी वो , बच्ची है , बच्ची ही रहेगी
क्यों शर्माती है पागल कभी भी ना समझ पाएगी
बहन मेरी उसमे , माँ मेरी , मेरी बेटी भी रहती है
आईने में अपना हासिल कभी भी ना समझ पाएगी
मानस भारद्वाज
Monday, August 16, 2010
कम से कम गाली तो दे पाता तुम्हे
कम से कम गाली तो दे पाता तुम्हे
मैं तुम्हे फ़ोन लगाता रहता हूँ
तुम काटती रहती हो
मैं तुम्हे sms करता हूँ
तुम जवाब नहीं देती हो
मैं तुम्हारी चिंता करता हूँ
मैं रोता रहता हूँ
मैं बिस्तर पर जाता हूँ
मैं सो नहीं पाता हूँ
मैं चिढ़ता रहता हूँ
मैं खीजता रहता हूँ
मैं खुद पर चिल्लाता हूँ
दीवारों पर हाथ मारता हूँ
किताबें फेंक देता हूँ
मुझे बहुत गुस्सा आता है
खुद पर निकालता रहता हूँ
मैं खुद से सवाल करता हूँ
खुद से जीतता रहता हूँ
मैं खुद से हारता रहता हूँ
मैं कितनी भी कोशिश कर लूं
मैं तुम्हे बददुआये दे नहीं पाता
तुम्हारे लिए मन से
दुआएं झरती रहती हैं
मैं खुद को गाली देता हूँ
मैं तुम्हे गाली तक दे नहीं पाता
फिर मेरा फ़ोन vibrate होता है
तुम्हारा sms आता है
"मम्मी के साथ हूँ उल्लू "
मैं reply करता हूँ
कमीनी .........हरामी
पहले नहीं बोल सकती थी
तुम्हारा सिर्फ एक sms जादू करता है
मैं तुम्हे गाली देता हूँ
मैं तुम्हे गालियाँ देने लगता हूँ
मानस भारद्वाज
Thursday, August 12, 2010
चलो चलो जल्दी करो जश्न मनाओ
जश्न मनाओ
१५ अगस्त है
आज़ादी का बिगुल बजाओ
मोबाइल कम्पनियाँ नयी caller tune बनाओ
टीवी वालों एक विज्ञापन कई बार दिखाओ
समाचार पत्रों तुम भी
कुछ सनसनी लाओ ....ज्यादा लाओ
दोपहर को मनोज कुमार की पिक्चर देखो
शाम को कोई नयी वाली , T.R.P वाली देखो
चौराहों पर बच्चों
तिरंगा बेचो , रात की रोटी जुगाडो
खाना खाओ ...बाप को दारु पिलाओ
चलो चलो ....आज़ादी का जश्न मनाओ ..
मेरे देश की धरती सोना उगले
मदर इंडिया को जिंदा करो
सुबह रेडियो पर गाने सुनो
सफ़ेद कपडे पहनो
तिरंगे को सलामी दो
शाम को उतार लो
चलो चलो जल्दी करो
प्रधानमंत्री का भाषण सुनो
उम्मीद मन में जगाओ
उम्मीदों का हवन करो
अपनी आग खुद बुझाओ
चलो चलो जश्न मनाओ
देखो सबको sms करो
एक नही दो चार एक साथ कर दो
देशभक्ति में कोई कमी नहीं होने पाए
भले ही दो चार रूपया ज्यादा ठुक जाए
चलो चलो जल्दी करो
जश्न मनाओ
१५ अगस्त है
आज़ादी का बिगुल बजाओ
मानस भारद्वाज
Tuesday, August 10, 2010
इस दुनिया से कुछ कच्ची लड़की
मेरे हर झूठ के बीच सच्ची लड़की
मेरी थोपी हुई मोहब्बत सहने वाली
खामोश रहने वाली अच्छी लड़की
वो ख़्वाबों सी दिखने वाली
वो आँखों पर बिछने वाली
मेरी यादों के परदे पर टंगी
बचपन से बड़ी होती बच्ची , लड़की
वो रेशम के धागे सी
वो आधी रात में जागे सी
वो चाँद पर बैठी हुई
चश्मा लगा के कहती हुई
आईने में खुद को देखती है
बाल पीछे कर के कहती है
मैं भी अच्छी दिखती हूँ तुम्हे ??
मानस तुमको चढ़ गयी है
इस दुनिया से कुछ कच्ची लड़की
मेरे हर झूठ के बीच सच्ची लड़की
मानस भारद्वाज
Thursday, July 22, 2010
मैं ये सोचता हूँ
क्या लिखूँ ये समझ नहीं आता है
जो समझ आता है वो लिख नहीं पाता
जो लिख पाता हूँ वो समझ नहीं आता है
जो आता है वो चाँद की रातें नहीं होती
जो होती है वो समय से मेरी बातें नहीं होती
जो होती हैं वो ज़िन्दगी की कसावटऐं हैं
तेरे संग बितायी हुई मुलाकातें नहीं होती
तेरे साथ का एक एहसास जो होता है
मैं सोचता हूँ कि वो लिखूँ
तेरे एहसास को मैं कैसे लिखूँ
जो मैं लिखता हूँ वो तेरी यादें हैं
वो यादें जो याद नहीं होती
मैं ये भी लिखता हूँ कि
मुझे तुझसे मोहब्बत रही है
अगली पंक्ति में फिर ये भी लिखता हूँ
मुझे तुझसे मोहब्बत नहीं है
मैं जो सोचता हूँ वो मैं लिख भी नहीं पाता
मैं सोचता हूँ तुझे किसी खुश्बू का नाम दूँ
मैं ये भी सोचता हूँ फिर कभी कभी
तेरे नाम पर ही सारी खुश्बूओं को नाम दूँ
सोचता हूँ कि तू चाँद की रातों की तरह है
फिर ये सोचता हूँ कि चाँद की रातें तेरी तरह है
मैं ये सोचता हूँ कि तू इसकी तरह है उसकी तरह है
फिर ये सोचता हूँ कि हर शख्श तेरी तरह है
मैं जिस बिस्तर पर अकेले रहता हूँ
सोचता हूँ तू मेरे बिस्तर पे मेरे साथ वहां है
मैं जो सोचता हूँ वो मैं कैसे बताऊ
मैं ये भी सोचता हूँ कि तू मेरे बच्चों की माँ है
मानस भारद्वाज
Sunday, February 7, 2010
कितने ही कांटे....
हम उसको खोजते खोजते खो गए हैं
उसका हमे छोड़ना भी क्या छोड़ना था
हम अपने होते-होते उसके हो गए हैं
मानस भारद्वाज
Friday, August 28, 2009
मेरी तमन्नाओ की टूटी हुई मिसाल है
जिंदगी मेरा बिछाया हुआ जाल है
मैं खुद की फोटोकॉपी होकर रह गया हूँ
किसी और के शरीर पर मेरी खाल है
मानस
Tuesday, May 26, 2009
एक एक घडी कैसे कटती है.......
तेरे लिए अब भी सिसकता हूँ दुआ मांगता हूँ
मुझे रौशनी और अंधेरों मे फर्क नहीं मालूम
अब मैं चौखट पर बिना जले दीये टांगता हूँ
तेरी यादों से अब काम नहीं बनता
हर एक मे तेरा ही अक्स छानता हूँ
मुझे मालूम है कोई तेरे जैसा नहीं है
मुझे मालूम है पर नहीं मानता हूँ
मुझे मालूम है दुनिया बदल जानी है
मैं हर किसी का चेहरा जानता हूँ
मुझे हर खेल की हकीकत मालूम है
मुझे मालूम है पर नहीं मानता हूँ
मानस भारद्वाज
Friday, May 1, 2009
ज़माने का ये सवाल मंहगा है
तुमसे इश्क का मलाल मंहगा है
हमने मजबूरी मे चाँद बेचा है
तुम्हे भुलाने का ख्याल मंहगा है
मानस भारद्वाज
Thursday, April 16, 2009
Tuesday, April 14, 2009
दुनिया का रूप बदल लेते हैं
ख़ुद का स्वरुप बदल लेते हैं
मुझे तुमसे मोहब्बत है
यही आखिरी सच है
वरना लोग तो घरों मे
आईने लगा लेते हैं
सूरज की धूप बदल लेते हैं
कुछ लोग जिंदगी मे जंगली घास उगने देते हैं
और कुछ लॉन की दूब बदल लेते हैं
कुछ रिश्तो की आजमाइश मे लगे रहते हैं
और कुछ घरों के संदूक बदल लेते हैं
दुनिया का रूप बदल लेते हैं
मानस भारद्वाज
Tuesday, March 31, 2009
कुछ उदास से
मेरी खामोशियों पे छा जाते हो तुम
बहुत खामोशी है तुम्हारी आँखों मे
आवाज क्या आँसूओ मे बहाते हो तुम
मानस भारद्वाज
Tuesday, March 24, 2009
चाँद भरी दुपहरी मे कई बार निकलता है
एक लड़की उसको देख आँखें मलती है
सूरज उसको टूक टूक देखा करता है
ऐसे ही तो सारी दुनिया चलती है
उसके न होने से कुछ नहीं बिगड़ता है
पर कुछ बात है जो मुझको खलती है
ये बात सच है सबको कड़वी लगती है
जाने क्यों रातो मे एक बस्ती जलती है
कौन ध्यान देगा बड़ी बेनाम सी बातें हैं
कहने को तो सारी बातें आम सी बातें हैं
सुना है एक शख्श बिलकुल मेरे जैसा है
अभी भी एक लड़की एक लड़के पर मरती है
मानस भारद्वाज
Wednesday, February 18, 2009
Saturday, January 31, 2009
तू जेहर के प्याले मे अमृत भर दे
तू एक बार मुझे छू ले अमर कर दे
मैं अपने लिए कुछ ज्यादा नही चाहता
दो पल सुख से जी लूँ ऐसा घर भर दे
मैं तमाम उम्र उजालों मे रहूँगा
मैं जितना रोया उतनी रौशनी कर दे
मैं अब मोहब्बत की बातें भी नही करता हूँ
कोई मेरा ये दर्द समझे इसे कम कर दे
मानस भारद्वाज
Saturday, December 20, 2008
कभी कभी ......
मोहब्बत का दुनिया मे कोई भी मरहम नहीं होता
मैं रात भर रोता हूँ पर आँखें नम नहीं होती
मेरे रोने से कभी कोई दरिया कम नहीं होता
मानस भारद्वाज
Sunday, December 7, 2008
हर्फ़ हर्फ़ सवाली हो जाता है
तेरे बिना जीना गाली हो जाता है
मैं तुझे फ़ोन करता हूँ तू काट देता है
आदमी मुहब्बत मे भिखारी हो जाता है
मुझे तेरे प्यार पे ऐतबार है
पर तेरा रूखापन सवाली हो जाता है
तू जिसे ठुकरा दे वो
अच्छा खासा आदमी सरकारी हो जाता है
तुझे याद करना दर्द कहलाता है
तुझे लिख देना शायरी हो जाता है
तेरे साथ हर लम्हे मे जिंदगी बसती है
तेरे बाद हर लम्हा बेकरारी हो जाता है
सब तेरा ही नाम जपते हैं
तेरी आवाज सुन फ़कीर व्यापारी हो जाता है
सारी दुनिया मे तेरा राज चलता है
हर कोई तेरे सामने दरबारी हो जाता है
तुझसे मोहब्बत बीमारी है
आदमी बिन पैसे का दिहाडी हो जाता है
तू इश्क को खेल समझता है
तेरा चाहने वाला जुआरी हो जाता है
मानस भारद्वाज
Wednesday, October 22, 2008
तुमसे मोहब्बत है इसलिए अभी ऐतबार बाकी है
इतने धोकों के बाद भी कारोबार बाकी है
मैंने तेरी चाहत में जिंदगी बरबाद कर ली
पर टूटा नही हूँ अभी घरबार बाकी है
मैंने हर आंसू हजारों में बेचा है
बेचना आए तो अभी खरीदार बाकी है
दोस्त तो सारे बदल गए हैं
दुश्मनों में अभी भी मेरा यार बाकी है
मानस भारद्वाज
Monday, September 22, 2008
दर्द मुस्कराया इस तरह
आधा वक़्त गुजरा तेरे साथ मे आधा तेरी याद मे
मैंने हर आंसू से एक मोती चुनकर सजा दिया
हर सुबह का समझोता हुआ हैं शाम से बात बात मे
मानस भारद्वाज
Monday, September 15, 2008
मुझको नहीं पता कविता क्या हैं
क्या सबध हैं क्या भाव हैं क्या मिश्रा हैं
कोई क्यों मेरा लिखा पढता हैं
कोई क्यों पढ़ते पढ़ते रो देता हैं
मुझको नहीं पता कविता क्या हैं
मुझको नहीं पता मेरे आस पास क्या दुनिया हैं
मुझे तो अपने आप से फुर्सत नहीं हैं
तो फिर क्यों ये कश्मीर का मसला हैं
क्यों लोग मरे हैं क्यों बम फटा हैं
मुझे तो दो वक़्त की रोटी मिल गई हैं
कुछ सिगरेट भी जलाई हैं कुछ नशा भी किया हैं
तो फिर क्यों किसानो ने आत्महत्या करी हैं
क्यों कब्र मे से एक आदमी आके कहता हैं
सारे कर्ज मैं ही आकर चुका दूंगा
मेरे बच्चे को छोड़ देना वो अभी छोटा हैं
मेरी बेहेन ने कॉन्वेंट मे पढाही करी हैं
मक्दोनाल्ड मे पिज्जा भी खाया हैं
टाइट जींस भी पहनी हैं नया फैशन भी अपनाया हैं
तो फिर क्यों गाँव मे एक बच्ची कहती हैं
अम्मा मरी नहीं थी उसे जिन्दा ही जलाया हैं
मेरा देश यू तो बहुत तरक्की कर रहा हैं
पर अभी भी स्कूल कम और मंदिर ज्यादा हैं
सेयर बाजार का मुझे नहीं पता हैं
अम्बानी टाटा बिरला ने क्या क्या किया हैं
धोनी यू तो बड़े बड़े मैच जिता रहा हैं
पर सुना हैं मेरे बाजु मे रहने वाला नत्थू
हर रोज जीने कि लिए कई बार मर रहा हैं
मुझको नहीं पता कविता क्या हैं
मानस भारद्वाज
Thursday, September 11, 2008
तूने भी तो सुना हैं दरिया के पानी को
फूलों सी महकती मोहब्बत की कहानी को
कि लब्जों की जबानी सब सच नहीं होती
समंदर की लहरें किसी के बस नहीं होती
ये रातों मे बहता हुआ पैगाम भी सुन ले
आँखों से टपकता हुआ एक नाम भी सुन ले
बात सिर्फ इतनी हैं यहाँ तेरी बात नहीं होती
तू वक़्त के साथ हैं पर कभी साथ नहीं होती
मेरे बस मे सिर्फ इतना हैं तेरा नाम न लूं
सरेआम तेरे साथ रहूँ पर सरेआम न लूं
पर ये यादें भी सिर्फ याद नहीं रहती
साथ हंसती हैं रोटी हैं पर साथ नहीं रहती
चिड्ती हैं खीजती हैं चिडाती हैं यादें
पल दो पल साथ ले जाती हैं यादें
मेरी दुनिया भी कभी कभी मेरी दुनिया नहीं रहती
मैं इनके साथ रहता हूँ ये मेरे साथ नहीं रहती
मानस भारद्वाज
Saturday, August 2, 2008
जिन्दगी
न सोचा कभी न चाहा कभी
फ़िर भी न जाने क्यों
तुझसे मुलाकात हो गई
बात तो खेर तुझमे
कुछ ख़ास नही थी
फ़िर भी न जाने क्यों
ये बात हो गई
शब्द जुबान पर आकर लड़खडाने लगे
एहसास उमंग नई जगाने लगे
कुछ पलों मे जिन्दगी गुजरने लगी
कुछ पलों मे हम जिन्दगी संजोने सजाने लगे
पर जिंदगी का क्या है कैसे ये दगा देती है
कभी ये हँसा देती है तो कभी रूला देती है
कहते हैं जीने के लिए साँसे चाहिए
पर हमे मालूम है ये सबको कहाँ देती है
जिंदगी एक नाव है जो समंदर मे बहती ही रहती है
जिंदगी एक आग है जो जलती ही रहती है
न नाव का साहिल है न आग को है बुझना
बस तैरते ही रहना है और जलते ही रहना है
और अब मुझे कभी कभी लगता है
मैं यू ही इधर उधर भटकता रहता हूँ
पता नही क्या खोजा करता हूँ किसे ढूंढ़ता रहता हूँ
अब मुझे समझ मे आया है कि तू ही जिन्दगी है
मानस भारद्वाज
Sunday, July 27, 2008
रात की इबारत मिट ही जाती है
रात की इबारत मिट ही जाती है
वक्त के आगे किसकी चल पाती है
यादें धीरे धीरे दर्द पहुचती हैं
जिंदगी लोग पहचानने मे निकल जाती है
कभी कभी हमारी जिंदगी हमें तरसती है
पर दिल की जुबान कहाँ दूजो तक पहुच पाती है
हर पल अहक या मुश्कान बिखर जाती है
जिसके कारण गज़ल गज़ल कहलाती है
तू अभी छोटा है तुझको समझ नही आती है
मानस भारद्वाज
Wednesday, July 16, 2008
जितनी तमन्नाये थी सब पूरी हो गई थी
पर फिर भी दिल मे बैचैनी थी वो क्यों थी
जिस से मोहब्बत थी वो मिल गई थी
पर फिर भी किसी की याद थी वो क्यों थी
जितने दुःख थे आंसू मे बह गए थे
पर फिर भी आंखों मे नमी थी वो क्यों थी
मानस भारद्वाज
Monday, July 14, 2008
जिन्दगी हवाओं मे बहती है
लहरों मे मचलती है
ख्वाबों मे बेहेकती है
आसमा मे रंगों मे रहती है
जिन्दगी उमंगों की पोटली है
तरंगों का खजाना है
ख्वाइशों का चहकना है
यादों का दहकना है
जिन्दगी एक कविता पुरानी है
खोयी हुई एक कहानी है
यू तो पड़े हुए मिल जाती है
पर खोजो तो हाथ नही आनी है
जिन्दगी रागों का समंदर है
यू तो कुछ भी नही है
पर बहुत कुछ हर किसी के अंदर है
जिंदगी को लिखूं तो बहुत शब्द हैं
न लिखूं तो कुछ भी कहाँ है
मुझे नही पता
जिंदगी क्या है
शब्धों मे कहूं तो सिर्फ़ इतना है
वो जिन्दगी जिन्दगी नही है
जो जिन्दगी तेरे बिना है
मानस भारद्वाज
Saturday, July 12, 2008
raat khwab me
की उसने अपने हाथों से अपना फ़ोन नंबर
मेरे हाथों पर लिख दिया है
और अपने घर का पता बताया है
मुझे बुलाया भी है
जागता हूँ तो हाथों पर क्या देखता हूँ
हाथों पर नम्बर तो मिट चुका है
पर हथेली पर कलम चलने का निशान बाकी है
उसके घर का पता तो याद नही है
पर अभी भी यादों मे एक मकान बाकी है
मानस भारद्वाज
Wednesday, June 25, 2008
कुछ मिसरे अभी जिंदा हैं
तुझसे बचने के लिए तेरे इशारों पे फिर हूँ
मैं बुद्ध नही हूँ पर दुनिया छोड़ चुका हूँ
अपनी हस्ती मिटाकर ख़ुद से भी मुँह मोड़ चुका हूँ
जंगल नदियाँ पर्वत पानी बादल पंछी खुशियाँ वीरानी
सिर्फ़ तुझे ही नही छोडा इन सब को भी छोड़ चुका हूँ
मैं शब्द शब्द से नाता तोड़ भावों से मुँह मोड़ चुका हूँ
प्यार की ख्वाइश इतनी करी की प्यार की ख्वाइश छोड़ चुका हूँ
मुझे जेहर की आदत हैं जेहर पे जिन्दा रहता हूँ
न कंठ नीला हैं न साँप लिप्त हैं पर तीसरी आँख खोल चुका हूँ
मानस भारद्वाज
Thursday, June 19, 2008
मैं आ गया हूँ बता
मैं मरने को तैयार हूँ बता इंतजाम क्या है
कोई भी अदालत इसे ग़लत नही कह सकती है
मैंने तो मोहब्बत की है बता तेरा इल्जाम क्या है
सोना चांदी हीरे मोती जो चाहा था सब मिल गया है
पर मुझसे खो गई है जो चीज उसका नाम क्या है
मैंने उससे मोहब्बत की है सीना ठोक के कहता हूँ
फांसी पे लटका दो इससे ज्यादा तुम्हारे बस मे अंजाम क्या है
वोह मेरा है मैं इसी ग़लतफ़हमी मे जी रहा हूँ
जो इस ग़लतफहमी को मिटा सके उसका नाम क्या है
मैं जबसे उससे मिला हूँ तन्हा हूँ पर उसके साथ हूँ
उसके आगे ये फूल तितली सागर शबनम चाँद क्या है
लोग कहते हैं मैं उसे भूल जाऊंगा एक दिन
दिन मान लिया पर रात भी आती है रात का इंतजाम क्या है
मानस भारद्वाज
Sunday, May 25, 2008
आज मेरे पास सब हैं चाँद मेरे आस पास नही है
तेरे बिना खुशियाँ ही नही गम भी अधूरा है
ये कैसा दर्द है की आज तेरे बिना मन भी उदास नही है
मैं दरिया किनारे खडा हो जाता तो सागर मिलने आता था
आज साहिल पे आया हून्तो कोई लहर भी आसपास नही है
मैं बरसों इसी ग़लतफहमी मे जिया हूँ की तेरे लिए ही बना हूँ
अब मरकर तेरी सासों मे जिंदा हूँ मेरी लाश मेरी लाश नही है
मानस भारद्वाज
Monday, May 5, 2008
आज फिर वो पन्ना निकल आया था
जिसमे पीले गुलाब की वो कली रखी थी
जो किसी ने मांगी थी मैं नही दे पाया था
उस तोहफे को मैं तोड़ लाया था
इसी किताब के उस पन्ने मे मैंने चोरी चोरी छुपाया था
आज उस पन्ने को देखकर आंख भींग जाती है
पर पीले गुलाब की वो कली देखकर
मीठी मीठी याद आती हैं
मैं तो बार बार मर रहा था
इसी पन्ने ने मुझे जीना सिखाया था
इसी कली की तो लेकर प्रेरणा
मैंने जीवन को अपनाया था
आज फिर वो पन्ना निकल आया था
मानस भारद्वाज
Friday, April 25, 2008
उसके हुस्न का ये भी जादू था
NILAY ITS FOR YOU ........
उसके हुस्न का ये भी जादू था कि कोई उसे सहने वाले नही मिले
उसके लिए मरने वाले तो बहुत थे पर उसके लिए जीने वाले नही मिले
वह बला कि खूबसूरत थी चाँद को भी मात देती उसकी सूरत थी
पर हमारे बाद कभी उसे हम जैसे दीवाने नही मिले
एक सुखा हुआ फूल ताउम्र अपनी किताब मे रखा हमने
उसके याद आने के कई कारण थे उसे भुलाने के बहाने नही मिले *
तेरे बिना भी हम अपनी सल्तनत के बादशाह थे अपने पर गुरुर न कर
तुझसे मुहब्बत मे सिर्फ़ दर्द ही मिला कोई खजाने नही मिले
मानस भारद्वाज
* ये शेर किसी और शेर से मिलता हुआ मुझे प्रतीत होता हैं । होता क्या हैं कि कई बार कविता लिखते समय हम भाव मे बहते हुए किसी और कि पंक्ति को अपना समझ लेते हैं । पाठकों से निवेदन हैं कि वे धेर्य से काम ले
और अगर उन्हें इसके शायर का नाम पता हैं तो मुझे बताये । मुझे उनका नाम लिखकर एक बोझ अपने ऊपर से उतरता हुआ महसूस होगा ।
Thursday, April 17, 2008
मन अनुरागी तन बैरागी
कुछ उनका भोलापन हैं कुछ सीधे सीधे लाचारी हैं
सीधी राहें पकड़ के चलना सबके बस कि बात नहीं
हमसे पूछो टेडी दुनिया में सीधा चलना कितनी बड़ी फनकारी हैं
आखिर दुनिया तूने हमको फसा ही डाला जाल में अपने
दिल अब उनसे मिलाते हैं जिनसे हाथ मिलाना भी भारी हैं
ख्वाब हमारे उसके वास्ते हैं जिससे कोई रिश्ता नहीं हैं
और जिनसे दुश्मनी होनी थी उनसे हमारी यारी है
---मानस भारद्वाज
ये ग़ज़ल निदा फाजली साहब की ग़ज़ल से प्रेरणा प्राप्त कर लिखी गई हैं ...
Tuesday, April 8, 2008
कोई भाव नही आते हैं आज
शब्द सारे ख़त्म हो चुके हैं
ना कोई बैचैनी न कोई दर्द
दिल साला अब खाली - खाली हैं
बस मैं ख़ुद हूँ
ख़ुद मैं समाया हूँ
कोई भाव नही आते हैं आज
तू आ आज रात मुझमे कविता जगा
कोई भाव नही आते हैं आज
-----मानस
Friday, April 4, 2008
रात चांदनी
मैंने देखा था सितारों में आग लगी थी
महका - महका धुआ निकला था
रात चाँद पर राख उडी थी
रात चांदनी मेरे साथ जली थी
---मानस
Tuesday, April 1, 2008
अक्सर मेरे साथ ये एहसास चलता हैं
अक्सर मेरे साथ तू नहीं तेरा साथ चलता हैं
जिस्म रूह खुदा मैं सब भूल जाता हूँ
मेरी दुनिया का हर कतरा तेरे आसपास चलता हैं
मोहब्बत नफरत खुशियाँ गम सब मिट जाते हैं
जब तेरे साथ चलता हूँ खुदा साथ चलता हैं
उदास सा एक किस्सा मेरे आसपास चलता हैं
अक्सर मेरे साथ ये एहसास चलता हैं
अक्सर मेरे साथ तू नहीं तेरा साथ चलता हैं
---मानस
मैं रोउंगा तो और रुलाने आयेगा
हैं गम बहुत वो आँसू बहाने आयेगा
जिंदगी कि ख्वाइशों का कोई और छोर नहीं
मैं जीना चाहूँगा तो वो मौत के बहाने आएगा
कसक तो बहुत बची हैं दिल में पर
सब भुला दूंगा अगर हाथ मिलाने आएगा
पतझर चल रहा हैं अभी जिंदगी मैं
पर एक दिन वो बनके बहार आएगा
---मानस
Sunday, March 30, 2008
अक्सर उसकी तस्वीर मिटा दिया करता हूँ मैं
जब चलता हूँ राहों पर
अपनी तक़दीर मिटा दिया करता हूँ मैं
मुझे मालूम हैं हर रास्ता आख़िर में
उसी तक मुड़कर जाता हैं
इसीलिए हाथों कि लकीर
मिटा दिया करता हूँ मैं
उसी को खोजता हूँ मैं हर किसी मैं
उसी को पाता हूँ मैं किसी मैं
तो उसी को खो देता हूँ मैं किसी मैं
मुसलसल ये चलती रहती हैं
जब जब बात बनती हैं
तब तब बिगड़ती रहती हैं
कुछ भी इस जहाँ मंएन ऐसा नही हैं
जिसे पुरा कह सकता हूँ मैं
उसके बिना मैं ख़ुद अधूरा हूँ
उसले बिना हर किसी को
अधुरा कह सकता हूँ मैं
अक्सर उसकी तस्वीर मिटा दिया............
Friday, March 28, 2008
शरारत
मैं उसे अपनी छत से मुँह बना-बना के कई तरह से चिडाता हूँ
जैसे कोई बच्चा अपने पड़ोस मे रहने वाले बच्चे को चिडाता है
पर फिर तेजी से घर मे भागता हूँ रात भर डरता हूँ घबराता हूँ
पड़ोस मे रहने वाले बच्चे लड़ने झड़ने पर एक दूसरे पर
गेंद कंकड़ पत्थर और ना जाने क्या - क्या फेकते हैं
किसी रात चाँद ने कोई सितारा दे मारा तो
Thursday, March 27, 2008
कभी यू ही सामने आ जाती है रौशनी की तरह
अजब सी ये आदतें होती हैं जिंदगी की तरह
बादल मे समा जाता है अक्सर चेहरा उसका
याद आती है उसकी बरसते पानी की तरह
कभी - कभी दोस्तों के साथ हँसी ठिठोली के बीच
उदासी आ जाती है छुट्टियों की दुपहरी की तरह
वो खेलते मे हारती है तो चिड्ती खिजती मारती भी है
वो भी हरकतें करती है कभी-कभी बच्चों की तरह
ये भी अजब बात हुई है मेरे साथ सनम
में भी लिखने लगता हूँ कभी शायरों की तरह
मानस भारद्वाज