Thursday, July 22, 2010

मैं ये सोचता हूँ

मैं ये सोचता हूँ की कुछ लिखूँ
क्या लिखूँ ये समझ नहीं आता है
जो समझ आता है वो लिख नहीं पाता
जो लिख पाता हूँ वो समझ नहीं आता है

जो आता है वो चाँद की रातें नहीं होती
जो होती है वो समय से मेरी बातें नहीं होती
जो होती हैं वो ज़िन्दगी की कसावटऐं हैं
तेरे संग बितायी हुई मुलाकातें नहीं होती

तेरे साथ का एक एहसास जो होता है
मैं सोचता हूँ कि वो लिखूँ
तेरे एहसास को मैं कैसे लिखूँ
जो मैं लिखता हूँ वो तेरी यादें हैं
वो यादें जो याद नहीं होती

मैं ये भी लिखता हूँ कि
मुझे तुझसे मोहब्बत रही है
अगली पंक्ति में फिर ये भी लिखता हूँ
मुझे तुझसे मोहब्बत नहीं है

मैं जो सोचता हूँ वो मैं लिख भी नहीं पाता
मैं सोचता हूँ तुझे किसी खुश्बू का नाम दूँ
मैं ये भी सोचता हूँ फिर कभी कभी
तेरे नाम पर ही सारी खुश्बूओं को नाम दूँ

सोचता हूँ कि तू चाँद की रातों की तरह है
फिर ये सोचता हूँ कि चाँद की रातें तेरी तरह है
मैं ये सोचता हूँ कि तू इसकी तरह है उसकी तरह है
फिर ये सोचता हूँ कि हर शख्श तेरी तरह है

मैं जिस बिस्तर पर अकेले रहता हूँ
सोचता हूँ तू मेरे बिस्तर पे मेरे साथ वहां है
मैं जो सोचता हूँ वो मैं कैसे बताऊ
मैं ये भी सोचता हूँ कि तू मेरे बच्चों की माँ है

मानस भारद्वाज