Tuesday, May 26, 2009

एक एक घडी कैसे कटती है.......

एक एक घडी कैसे कटती है जानता हूँ
तेरे लिए अब भी सिसकता हूँ दुआ मांगता हूँ
मुझे रौशनी और अंधेरों मे फर्क नहीं मालूम
अब मैं चौखट पर बिना जले दीये टांगता हूँ

तेरी यादों से अब काम नहीं बनता
हर एक मे तेरा ही अक्स छानता हूँ
मुझे मालूम है कोई तेरे जैसा नहीं है
मुझे मालूम है पर नहीं मानता हूँ

मुझे मालूम है दुनिया बदल जानी है
मैं हर किसी का चेहरा जानता हूँ
मुझे हर खेल की हकीकत मालूम है
मुझे मालूम है पर नहीं मानता हूँ

मानस भारद्वाज

Friday, May 1, 2009

ज़माने का ये सवाल मंहगा है

ज़माने का ये सवाल मंहगा है
तुमसे इश्क का मलाल मंहगा है

हमने मजबूरी मे चाँद बेचा है
तुम्हे भुलाने का ख्याल मंहगा है

मानस भारद्वाज