Wednesday, February 18, 2009

तेरे लिए बड़े बेताब हो रहे हैं
आजकल हम ही आफताब हो रहे हैं

हमने ही चाँद को चलना सिखाया था
हमारे कारन समन्दरों मे सैलाब हो रहे हैं

तू मेरा हाथ पकड़ के चल रही हैं
आजकल आंखों मे बड़े ख्वाब हो रहे हैं

मुझे धीरे धीरे मारने वालों ध्यान रखना
मेरे लहू के कतरे तेजाब हो रहे हैं

मानस भारद्वाज