Saturday, August 2, 2008

जिन्दगी

न सोचा कभी न चाहा कभी
फ़िर भी न जाने क्यों
तुझसे मुलाकात हो गई
बात तो खेर तुझमे
कुछ ख़ास नही थी
फ़िर भी न जाने क्यों
ये बात हो गई


शब्द जुबान पर आकर लड़खडाने लगे

एहसास उमंग नई जगाने लगे

कुछ पलों मे जिन्दगी गुजरने लगी
कुछ पलों मे हम जिन्दगी संजोने सजाने लगे

पर जिंदगी का क्या है कैसे ये दगा देती है
कभी ये हँसा देती है तो कभी रूला देती है
कहते हैं जीने के लिए साँसे चाहिए
पर हमे मालूम है ये सबको कहाँ देती है

जिंदगी एक नाव है जो समंदर मे बहती ही रहती है
जिंदगी एक आग है जो जलती ही रहती है
न नाव का साहिल है न आग को है बुझना
बस तैरते ही रहना है और जलते ही रहना है

और अब मुझे कभी कभी लगता है
मैं यू ही इधर उधर भटकता रहता हूँ
पता नही क्या खोजा करता हूँ किसे ढूंढ़ता रहता हूँ

अब मुझे समझ मे आया है कि तू ही जिन्दगी है

मानस भारद्वाज