रात की इबारत मिट ही जाती है
वक्त के आगे किसकी चल पाती है
यादें धीरे धीरे दर्द पहुचती हैं
जिंदगी लोग पहचानने मे निकल जाती है
कभी कभी हमारी जिंदगी हमें तरसती है
पर दिल की जुबान कहाँ दूजो तक पहुच पाती है
हर पल अहक या मुश्कान बिखर जाती है
जिसके कारण गज़ल गज़ल कहलाती है
तू अभी छोटा है तुझको समझ नही आती है
मानस भारद्वाज