Sunday, July 27, 2008

रात की इबारत मिट ही जाती है

रात की इबारत मिट ही जाती है
वक्त के आगे किसकी चल पाती है

कील की तरह मुझमे समाती हैं
यादें धीरे धीरे दर्द पहुचती हैं

किस मुखोटे मे किसका चेहरा है खुदा जाने
जिंदगी लोग पहचानने मे निकल जाती है

हर तरफ़ इतना हसीं माहौल है
कभी कभी हमारी जिंदगी हमें तरसती है

भासा की खामियां तो सब जानते हैं
पर दिल की जुबान कहाँ दूजो तक पहुच पाती है

हर पल कुछ नया लेकर आता है
हर पल अहक या मुश्कान बिखर जाती है

मेरे शहर मे अभी भी रहता है वो
जिसके कारण गज़ल गज़ल कहलाती है

अम्मा अक्सर मुझको कहती रहती थी
तू अभी छोटा है तुझको समझ नही आती है

मानस भारद्वाज

Wednesday, July 16, 2008

जितनी तमन्नाये थी सब पूरी हो गई थी

जितनी तमन्नाये थी सब पूरी हो गई थी
पर फिर भी दिल मे बैचैनी थी वो क्यों थी

जिस से मोहब्बत थी वो मिल गई थी
पर फिर भी किसी की याद थी वो क्यों थी

जितने दुःख थे आंसू मे बह गए थे
पर फिर भी आंखों मे नमी थी वो क्यों थी

मानस भारद्वाज

Monday, July 14, 2008

जिन्दगी हवाओं मे बहती है

जिन्दगी हवाओं मे बहती है
लहरों मे मचलती है
ख्वाबों मे बेहेकती है
आसमा मे रंगों मे रहती है

जिन्दगी उमंगों की पोटली है
तरंगों का खजाना है
ख्वाइशों का चहकना है
यादों का दहकना है

जिन्दगी एक कविता पुरानी है
खोयी हुई एक कहानी है
यू तो पड़े हुए मिल जाती है
पर खोजो तो हाथ नही आनी है

जिन्दगी रागों का समंदर है
यू तो कुछ भी नही है
पर बहुत कुछ हर किसी के अंदर है

जिंदगी को लिखूं तो बहुत शब्द हैं
न लिखूं तो कुछ भी कहाँ है
मुझे नही पता
जिंदगी क्या है
शब्धों मे कहूं तो सिर्फ़ इतना है

वो जिन्दगी जिन्दगी नही है
जो जिन्दगी तेरे बिना है


मानस भारद्वाज

Saturday, July 12, 2008

raat khwab me

रात ख्वाब मे क्या देखता हूँ
की उसने अपने हाथों से अपना फ़ोन नंबर
मेरे हाथों पर लिख दिया है
और अपने घर का पता बताया है
मुझे बुलाया भी है


जागता हूँ तो हाथों पर क्या देखता हूँ
हाथों पर नम्बर तो मिट चुका है
पर हथेली पर कलम चलने का निशान बाकी है
उसके घर का पता तो याद नही है
पर अभी भी यादों मे एक मकान बाकी है

मानस भारद्वाज