Sunday, May 25, 2008

तुमको शब्दों मे ढाल सकू मैं इतनी मेरी औकाद नही है
आज मेरे पास सब हैं चाँद मेरे आस पास नही है

तेरे बिना खुशियाँ ही नही गम भी अधूरा है
ये कैसा दर्द है की आज तेरे बिना मन भी उदास नही है

मैं दरिया किनारे खडा हो जाता तो सागर मिलने आता था
आज साहिल पे आया हून्तो कोई लहर भी आसपास नही है

मैं बरसों इसी ग़लतफहमी मे जिया हूँ की तेरे लिए ही बना हूँ
अब मरकर तेरी सासों मे जिंदा हूँ मेरी लाश मेरी लाश नही है

मानस भारद्वाज

Monday, May 5, 2008

आज फिर वो पन्ना निकल आया था

आज फिर वह पन्ना निकल आया था
जिसमे पीले गुलाब की वो कली रखी थी
जो किसी ने मांगी थी मैं नही दे पाया था
उस तोहफे को मैं तोड़ लाया था
इसी किताब के उस पन्ने मे मैंने चोरी चोरी छुपाया था

आज उस पन्ने को देखकर आंख भींग जाती है
पर पीले गुलाब की वो कली देखकर
मीठी मीठी याद आती हैं
मैं तो बार बार मर रहा था
इसी पन्ने ने मुझे जीना सिखाया था
इसी कली की तो लेकर प्रेरणा
मैंने जीवन को अपनाया था

आज फिर वो पन्ना निकल आया था

मानस भारद्वाज