Sunday, March 30, 2008

अक्सर उसकी तस्वीर मिटा दिया करता हूँ मैं

अक्सर उसकी तस्वीर मिटा दिया करता हूँ मैं
जब चलता हूँ राहों पर
अपनी तक़दीर मिटा दिया करता हूँ मैं
मुझे मालूम हैं हर रास्ता आख़िर में
उसी तक मुड़कर जाता हैं
इसीलिए हाथों कि लकीर
मिटा दिया करता हूँ मैं

उसी को खोजता हूँ मैं हर किसी मैं
उसी को पाता हूँ मैं किसी मैं
तो उसी को खो देता हूँ मैं किसी मैं
मुसलसल ये चलती रहती हैं
जब जब बात बनती हैं
तब तब बिगड़ती रहती हैं

कुछ भी इस जहाँ मंएन ऐसा नही हैं
जिसे पुरा कह सकता हूँ मैं
उसके बिना मैं ख़ुद अधूरा हूँ
उसले बिना हर किसी को
अधुरा कह सकता हूँ मैं

अक्सर उसकी तस्वीर मिटा दिया............

Friday, March 28, 2008

शरारत

फलक से चाँद जब भी मुझे लटके-लटके देखता है
मैं उसे अपनी छत से मुँह बना-बना के कई तरह से चिडाता हूँ
जैसे कोई बच्चा अपने पड़ोस मे रहने वाले बच्चे को चिडाता है
पर फिर तेजी से घर मे भागता हूँ रात भर डरता हूँ घबराता हूँ
पड़ोस मे रहने वाले बच्चे लड़ने झड़ने पर एक दूसरे पर
गेंद कंकड़ पत्थर और ना जाने क्या - क्या फेकते हैं

किसी रात चाँद ने कोई सितारा दे मारा तो

Thursday, March 27, 2008

कभी यू ही सामने आ जाती है रौशनी की तरह

कभी यू ही सामने आ जाती है रौशनी की तरह
अजब सी ये आदतें होती हैं जिंदगी की तरह

बादल मे समा जाता है अक्सर चेहरा उसका
याद आती है उसकी बरसते पानी की तरह

कभी - कभी दोस्तों के साथ हँसी ठिठोली के बीच
उदासी आ जाती है छुट्टियों की दुपहरी की तरह

वो खेलते मे हारती है तो चिड्ती खिजती मारती भी है
वो भी हरकतें करती है कभी-कभी बच्चों की तरह

ये भी अजब बात हुई है मेरे साथ सनम
में भी लिखने लगता हूँ कभी शायरों की तरह

मानस भारद्वाज