Sunday, May 25, 2008

तुमको शब्दों मे ढाल सकू मैं इतनी मेरी औकाद नही है
आज मेरे पास सब हैं चाँद मेरे आस पास नही है

तेरे बिना खुशियाँ ही नही गम भी अधूरा है
ये कैसा दर्द है की आज तेरे बिना मन भी उदास नही है

मैं दरिया किनारे खडा हो जाता तो सागर मिलने आता था
आज साहिल पे आया हून्तो कोई लहर भी आसपास नही है

मैं बरसों इसी ग़लतफहमी मे जिया हूँ की तेरे लिए ही बना हूँ
अब मरकर तेरी सासों मे जिंदा हूँ मेरी लाश मेरी लाश नही है

मानस भारद्वाज

4 comments:

शोभा said...

अच्छा लिखा है मानस जी-
तेरे बिना खुशियाँ ही नही गम भी अधूरा है
ये कैसा दर्द है की आज तेरे बिना मन भी उदास नही है
सुन्दर पंक्तियाँ।

Mandeep said...

Bahut achha likha hai manas bhai.

Amit K Sagar said...

तेरे बिना खुशियाँ ही नही गम भी अधूरा है
ये कैसा दर्द है की आज तेरे बिना मन भी उदास नही है
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kyaa kahun ab main mitr. ki kah diyaa tumane hi sab...bahut hi super. keep it up.

GIRISH JOSHI said...

मानस,
फिर से आप एक अच्छी रचना लेकर आये है| मैं सभी दोस्तों को बताता हूँ कि रचना बनाने के बाद उसे गौर से बार बार पढो और उसका एडिटिंग करो| इस पंक्तियों में जान भरने के लिए थोडा एडिटिंग करते है,

बरसों इसी ग़लतफहमी मे जिया की मैं तेरे लिए ही बना हूँ
मरकर तेरी सासों मे जिंदा हूँ मैं मरा कहाँ, मेरी लाश नही है
If you are using Gazal meter then do accordingly.